प्रतिष्ठा शूकरी विष्ठा
"प्रतिष्ठा शूकरी विष्ठा त्रीणि त्यक्त्वा सुखी भवेत्।" का अर्थ है "प्रतिष्ठा (मान-सम्मान) सूअर की विष्ठा के समान है, इन तीनों को त्याग कर सुखी हो जाओ।" यह एक संस्कृत श्लोक है जो दर्शाता है कि व्यक्ति को मान-सम्मान, अभिमान, और गौरव से दूर रहना चाहिए।
आज हम इस दुनिया में देख रहे हैं कि हर कोई दौलत और शोहरत के पीछे पड़ा है।
भाग्य का अर्थ है धन और भौतिक सुख-सुविधाएँ।
यहाँ "प्रतिष्ठा शुक्रि विष्ठा का अर्थ कहा गया है "प्रतिष्ठा (मान-सम्मान) सूअर की प्रतिष्ठा के समान है,
इन्हें त्याग कर सुखी हो जाओ।"
यह एक संस्कृत श्लोक है जिसमें बताया गया है कि व्यक्ति को मान-सम्मान,
अभिमान और गौरव से दूर रहना चाहिए।