‘तन्मे
मनः शिवसंकल्पमस्तु’। हमारा संकल्प शिव हो। मंगलकारी,
सुखकारी व विधेयात्मक संकल्प
हो।
किसी व्यक्ति की
सफलता उसके कर्म और
भाग्य पर तो निर्भर
हैं ही, लेकिन इससे
भी पहले संकल्प पर
निर्भर है। हम जिस
भाव से कर्मपथ पर
आगे की ओर बढ़ते
हैं, उसी भाव के
अनुरूप सफलता या असफलता हाथ
आती है। जब हम
अर्थात् मेरा मन सदैव
शुभ विचार ही किया करें,
के भाव से भरे
होते हैं, तो शुभ
ही होता है। यदि
दुर्भाव से भरें हों
तो शुभ की सम्भावना
संदिग्ध हो जाती है।
वेद कहता है
जब भी आप संकल्प
करो तो शिव- संकल्प
करों अर्थात् सुखद संकल्प करो,
कल्याणकारी संकल्प करो। शिव का
अर्थ ही है कल्याण!
शिव संकल्प में प्राणिमात्र के
लिए कल्याण का चिंतन है।
स्वभावतः जब हम सबके
कल्याण की कामना करते
हैं, स्वयं का कल्याण तो
हो ही जाता है।
यही सकारात्मक और नकारात्मक भाव
है, जो शिव भाव
है। वही विधेय हैं,
जो अशुभ भाव है,
वही निषेध। व्यक्ति के शिव भाव
व्यक्तियों को और व्यक्तियों
के शुभ भाव संगठनों
को सफलता की ओर अग्रसर
करते हैं।
स्वामी
विवेकानंद ने
कहा है "हम वही हैं जो हमारे विचारों ने हमें बनाया है; इसलिए इस बात का ध्यान रखें कि आप क्या सोचते हैं। शब्द गौण हैं। विचार जीवित रहते हैं।"
उन्होंने
आगे कहा "कभी मत सोचो कि कुछ भी असंभव है। ऐसा सोचना सबसे बड़ा पाखंड है। अगर कोई पाप है, तो वह यही है कि तुम या दूसरे लोग कमज़ोर हैं, यह कहना ही एकमात्र पाप है।"
"तन्मे
मनः शिव संकल्पमस्तु" यजुर्वेद के शिव संकल्प
सूक्तम में मिलता है।
इस श्लोक में अच्छे विचारों और सकारात्मक सोच की अवधारणाओं को बहुत अच्छी तरह से समझाया
गया है
यज्जाग्रतो
दूरमुदैति दैवं तदुसुप्तस्य तथैवैति |
दूरंगमं ज्योतिषां ज्योतिरेकं तन्मे मनः शिवसंकल्पमस्तु ||
वह चेतन मन जो
जागते समय दूर जाता
है और सोते समय
निकट आता है, जो
समस्त ज्योतियों में एक ही
ज्योति है; वह मेरा
मन शुभ विचारों वाला
हो।
येन कर्माण्यपसो मनीषिणो, यज्ञे कृण्वन्ति विदथेषु धीराः |
यदपूर्वं यक्षमन्तः प्रजानां, तन्मे मनः शिवसंकल्पमस्तु ||
वह मन जिसके द्वारा
कर्म में स्थित हुए
बुद्धिमान पुरुष नाना प्रकार के
यज्ञों में तत्पर रहते
हैं, तथा जो अद्वितीय,
पूजनीय तथा समस्त प्राणियों
में निवास करने वाला है,
वह मेरा मन शुभ
विचारों वाला हो!
यत्प्रज्ञानमुत
चेतो धृतिश्च, यज्ज्योतिरन्तरमृतं प्रजासु |
यस्मान्न ऋते किञ्चन कर्म क्रियते, तन्मे मनः शिवसंकल्पमस्तु ||
जो बुद्धि प्रज्ञा, मेधा, क्षमा, धृति से
युक्त है, जो अमर
है, जो समस्त प्राणियों
में प्रकाश है, जिसके बिना
कोई भी कार्य संभव
नहीं है, वह मेरा
मन शुभ विचारों वाला
हो!
इस श्लोक में शिव का अर्थ है:
शिव संसार के सबसे उत्तम तत्व हैं। हमारा मन शिव में, शुभ और श्रेष्ठ में रमे। अच्छे
कर्म केवल शुभ विचारों से ही किए जा सकते हैं। जब हम उत्पादों की गुणवत्ता की बात करते
हैं, तो यह कार्यबल की गुणवत्ता पर निर्भर करता है। केवल गुणवत्तापूर्ण कार्यबल ही
गुणवत्तापूर्ण उत्पाद या सेवाएँ प्रदान कर सकता है। कार्यबल की गुणवत्ता टीम के गहनतम
विचारों पर निर्भर करती है। हमारी टीम के एकमत विचार गुणवत्तापूर्ण विचार बनें।
तन्मे मनः शिव
संकल्प अस्तु।
तन्मे
मनः शिव संकल्प अस्तु।
तन्मे
मनः शिवसंकल्पमस्तु’।
हमारा
संकल्प शिव हो।
मंगलकारी,
सुखकारी व विधेयात्मक संकल्प
हो। ‘