“मै जिंदा हुं” यही टाइटल था “I
am Legend” फिल्म के हिन्दी भाषांतरित प्रिंट का । विल स्मीथ के द्वारा अभिनीत इस फिल्म मे एक द्रुश्या मे हीरो साथी कलाकार को बॉबमारली को बारे में कहता है कि, बॉब मारली यह मानते थे और चाह्ते थे कि संगीत के द्वारा समाज के लोगो के बीच की नफरत, द्वेष और इर्षा को मिटाया जा सक्ता है ।
बात को आगे समझाते हुए मूवी में विल स्मीथ बताते है कि, एक बार कोई शो से दो दिन पहले बॉब मारली को और उनकी बातो को ना पसंद करने वाले ने उनपर हमला कर दिया। लेकिन फिर भी दो दिन बाद वो अपने कोनसर्ट के लिए पहुंच गये, तब पत्रकारो ने इसका कारण पुछा । तो जवाब में बॉब मारली बताते है, “दुनिया में नफरत को फैलाने वाली बुराई न तो रुक्ति रुकती, नाहि थकती है । तो, मैं कैसे रुक सकता हुं ? “
यह दूश्य में अभिनेता के हावभाव और शारीरिक भाषा प्रभावशाली है । इस दूश्य तुरंत ही पूरी पट्कथा का प्रेरक समझ में आ जाता है । यह बॉब मारली की जीवनी अभिनेता को जीवन की प्रेरणा है।
इस दॄश्य के द्वारा आप के सामने यह विषय रखने की कोशिष कर रहा हुं ।
दिव्य ध्येय की और तपस्वी,
जीवनभर अविचल चलता है।
यह छोटी सी कहानी इस पटकथा के नायक के जीवन का आधार बन गई थी, बल्कि यह कहना भी गलत कि, यह पुरी पट्कथा का आधार है । अभिनेता चरित्र का खुद पर विश्वास इसी बॉब मारली की जीवनी पर आधारित ही था ।
अत्यंत महत्वपूर्ण सीख यह कहानी हम को देती है, यह है “जीवनव्रत”। कोइ काम तो हम अपने जीवन को व्रत के रुप में अपनावें और उस काम को जीवन भर पूर्ण रुप से व्रत मान कर करते रहे । हम स्वय्म प्रेरीत हो। एसी अनेकअनेक प्रेरक क्थाए हमारे आसपास हमेंशा रहती है । प्रश्न यह है, क्या हम अपने जीवन पर्यंत के व्रत ऊठाने के लिए तैयार है, या नही?
श्री मुकुल कानीटकर की यह कविता अधिक स्पष्टता को लिए प्रस्तुत है ।
कहते है कि बडा
कन्ट्काकीर्ण होता है
सत्य का पथ !
कन्ट्काकीर्ण होता है
सत्य का पथ !
पर
अनुभव तो है ये कि
सत्यपथ सदाही
मनोहर होता है।
अनुभव तो है ये कि
सत्यपथ सदाही
मनोहर होता है।
हां बाधायें तो निश्चित
अधिक आयेंगी।
पर हौसला भी तो
औरों से अधिक होगा।
साथी भी भले
संख्या में कम लगे
पर होंगे सच्चे और पक्के।
अधिक आयेंगी।
पर हौसला भी तो
औरों से अधिक होगा।
साथी भी भले
संख्या में कम लगे
पर होंगे सच्चे और पक्के।
हे मेरे सत्यपथी
छोडना न साथ
सत्य का
तोड़ना न व्रत जीवन धर्म का
छोडना न साथ
सत्य का
तोड़ना न व्रत जीवन धर्म का
जीवन में जो हम व्रत लेकर, जो राह पर चल पडे है, वही राह पर अथक चलते रहना ही, राह का सम्मान होगा । स्व. हरिवंशराय बच्चन की इन पंक्तिओ से यह विष्य समाप्त करता हुं।
तू न
थकेगा कभी,
तू न
रुकेगा कभी,
तू न
मुड़ेगा कभी,
कर शपथ,
कर शपथ, कर शपथ,
अग्निपथ
अग्निपथ अग्निपथ।
- Vipul Bhatt- Bhuj
Good interpretation of a great THOUGHT. Keep writing .
जवाब देंहटाएंGood one
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